जादू की पुड़‍िया में आपका स्‍वागत है। चूंकि यहां जादू के बारे में ख़बरें 'कभी-भी' और 'कितनी भी' आ सकती हैं। और हो सकता है कि आप बार-बार ब्‍लॉग पर ना आ सकें। ऐसे में जादू की ख़बरें हासिल करने के लिए ई-मेल सदस्‍यता की मदद लें। ताकि 'बुलेटिन' मेल-बॉक्‍स पर ही आप तक पहुंच सके।

Tuesday, January 17, 2012

धूप जाओ खाना खाकर आओ।

जादू आज सबेरे पापा के साथ दूध लेने गया था।
सर्द सुबह की धूप बिखरी थी।
जादू बोले--'पापा देखिए यहां धूप है, वहां धूप है। पेप्‍सी ग्राउंड में धूप है।

बोलीबोली(बोरीवली) स्‍टेशन पर धूप है।

गाड़ी की विन्‍ड-स्‍क्रीन से छनकर धूप जादू की आंखें चौंधिया रही थी।

जादू जी परेशान हो गए।

बोले 'प्‍यारी धूप दाओ खाना खाकर आओ। सुन नहीं रही हो। समझ गयीं।

अले दाओ ना। मम्‍मा बुला  रही हैं '

फिर बोले--धूप सुन नहीं रही है।

आज जादू जी अपनी चिटपिटी वाली गन लेकर गए थे।

सब्‍ज़ी वाला बोला--अरे भैया तुम तो सबेरे से कट्टा लेकर घूम रहे हो।

फिर जादू कट्टा रखकर मटर छीलते पाए गए।

ये रही तस्‍वीर।

IMG_3710

4 comments:

Amrita Tanmay said...

बहुत सुंदर

"डॉक्टर मामा" said...

"अरे भैया",
कट्टे में गोली की जगह मटर के दाने भरोगे क्या ?
...और मारोगे किसको - दानों से ?

"डॉक्टर मामा" said...

वैसे ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि हमारे बिलकुल असली भाँजे निकल रहे हो - पक्के इलाहाबादी !
कट्टा हाथ से छूटने ना पाये,गुरू !!

"डॉक्टर मामा" said...

अब से हम भी बिलकुल इसी अन्दाज़ में मरीज़ के बगल में ऑपरेशन टेबल पर रखा करेंगे.....

....अपना कट्टा !

Post a Comment